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हर तरफ़ घुप्प सा / कृष्ण शलभ
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हर तरफ़ घुप्प-सा अंधेरा है
क्यों है, क्या ये भी तूने सोचा है
सबको अपना कहो, मिलो सबसे
ज़िंदगी चार दिन का मेला है
तू मिला, दिल गया, सकून गया
ये करिश्मा भी, यार, तेरा है
गुफ़्तगू कर मियाँ सलीके से
बदज़ुबानी कोई सलीका है!