बाल कविताएँ / भाग 10 / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
मेरा घोड़ा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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मेरा घोड़ा
लम्बा –चौड़ा
बहुत अनाड़ी ।
खाकर पत्ती
मार दुलत्ती
खींचे गाड़ी ।
सरपट दौड़े
पीछे छोड़े
टीले झाड़ी ।
देखे –भाले
पोखर नाले
टीले झाड़ी ।
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काली बिल्ली / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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काली बिल्ली
छोड़ गाँव को
भागी-भागी
आई दिल्ली ।
दौड़ लगाई ,
लाल किले तक
मिला नहीं पर
दूध मलाई ।
दिन-भर भटकी ,
गली-गली में
चौराहों पर
आकर अटकी ।
अब यह आई,
बात समझ में-
जीभ चटोरी
है दुखदायी ।
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देश हमारा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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सुन्दर प्यारा
देश हमारा
बहे यहाँ
गंगा की धारा ।
शीश हिमालय
छूता अम्बर ,
धोता है पग
इसके सागर ।
है सबकी –
आँखों का तारा ।
इस पर अपने
प्राण लुटाएँ ,
हम सब इसका
मान बढ़ाएँ ।
‘भारत की जय !’
अपना नारा ।
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