भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उस नज़र पे छाये हुए और सौ गुलाब / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:13, 23 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=कुछ और गुलाब / गुलाब खंड…)
उस नज़र पे छाये हुए और सौ गुलाब
लीजिये हैं आये हुए और सौ गुलाब
क्या करें जो दिल को तुम्हीं एक भा गए
यों तो थे सजाये हुए और सौ गुलाब
कोई देखकर है निगाहें चुरा रहा
आज हैं पराये हुए और सौ गुलाब
रोकिये भले ही अदाओं को प्यार की
खिल रहे लजाये हुए और सौ गुलाब
हम नहीं रहे तो क्या बहार मिट गयी
बाग़ था छिपाए हुए और सौ गुलाब