भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ भी नहीं जो हमसे छिपाते हो, ये क्या है / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:33, 23 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=कुछ और गुलाब / गुलाब खंड…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कुछ भी नहीं, जो हमसे छिपाते हो, ये क्या है!
मिलकर भी निगाहें न मिलाते हो, ये क्या है!

थे और बहाने नहीं आने के सैंकडों
कहते हो, 'हमें क्यों न बुलाते हो,'--ये क्या है!

जबतक सजा के खुद को हम आते हैं मंच पर
परदा ही सामने का गिराते हो, ये क्या है!

दिन-रात याद करने का अहसान तो गया
इल्ज़ाम भूलने का लगाते हो, ये क्या है!

माना नहीं क़बूल था मिलना गुलाब से
यह बात शहर भर को बताते हो, ये क्या है!