भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समझे न दिल की बात इशारे को देखकर / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:06, 25 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=कुछ और गुलाब / गुलाब खंडे…)
समझे न दिल की बात इशारे को देखकर
देखा था उनकी ओर बहारों को देखकर
डूबी है नाव अपने ही पाँवों की चोट से
हम नाचने लगे थे किनारों को देखकर
धोखा ही हमने खाया हसीनों से है सदा
सावन समझ रहे थे फुहारों को देखकर
जो देखना हो देखिये इस दिल में झुकके आप
क्या कीजियेगा चाँद-सितारों को देखकर!
अच्छा है, आप बाग़ में चुप ही रहें, गुलाब!
हँसते है लोग पाँच सवारों को देखकर