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यह सितारों से भरी रात हमारी कब थी! / गुलाब खंडेलवाल

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यह सितारों से भरी रात हमारी कब थी!
आपके प्यार की सौगात हमारी कब थी!

कोई छींटा कभी उड़ता हुआ आया भी तो क्या
झमझमाती हुई बरसात हमारी कब थी!

था वही बाग़, वही फूल, वही तुम थे मगर
फिर बहारों से मुलाक़ात हमारी कब थी!

आख़िरी वक़्त निगाहों में खिल उठे थे गुलाब
उनकी महफ़िल में चली बात हमारी कब थी!