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भले ही हाथ से आँचल छुडाये जाते हैं / गुलाब खंडेलवाल

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भले ही हाथ से आँचल छुड़ाये जाते हैं
वे और भी मेरे दिल में समाये जाते हैं

उन्हें सवाल भी अपना सुना के क्या होगा
जो हर सवाल पे बस मुस्कुराये जाते हैं!

शराब हुस्न की सबको पिला रहे वे, मगर
हमें कुछ और नज़र से पिलाये जाते हैं

कहें भी क्या जो वही पूछ रहे हैं हमसे!
'ये ग़म हैं क्या जो तेरा दिल जलाये जाते हैं'

गुलाब बाज़ न आते हैं उनसे मिलने से
भले ही राह में काँटें बिछाये जाते हैं