भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राह फूलों से सजेगी एक दिन / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:58, 26 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की / गुल…)
राह फूलों से सजेगी एक दिन
प्यार की डोली उठेगी एक दिन
उनपे मरते हैं हमारी मौत भी
ज़िन्दगी बनकर रहेगी एक दिन
प्यार सच्चा है तो मंजिल दूर क्या!
खुद ही पाँवों से लगेगी एक दिन
ज़िन्दगी के ठाठ पर मत जाइए
यह निगाहें फेर लेगी एक दिन
धूल से मुँह मोड़ना कैसा, गुलाब!
धूल ही बिस्तर बनेगी एक दिन