Last modified on 28 जून 2011, at 09:42

सुनत सलौनी बात यह / शृंगार-लतिका / द्विज

Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:42, 28 जून 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दोहा
(वसंतागम सुन दर्शनार्थ उत्सुक होने का वर्णन)

सुनत सलौनी बात यह, तन-मन सबै भुलाइ ।
ऋतु-पति के दरसन हितै, बाढ़्यौ उर मैं चाइ ॥८॥