भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक अर्से बाद / रणजीत
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:41, 1 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रणजीत |संग्रह=प्रतिनिधि कविताएँ / रणजीत }} {{KKCatKavita…)
एक अर्से बाद
तुम्हें देखना
जैसे सारंगी पर रामनारायण से राग पीलू सुनना
वैसे ही सिकुड़ जाती हैं चेहरे की शिराएँ
और कुछ-कुछ वैसी ही टीस अनुभव होती है
आँतों में कहीं गहराई पर !
तुम्हारे साथ चलना
जैसे रेरिख़ के शोख़ रंगों के मायालोक में घूमना
वैसी ही अपने आप को हवा में बिखेर देने की-सी इच्छा
एक ख़ुशबू की तरह भार-मुक्त हो जाने की-सी अवस्था ।
तुम्हें प्यार करना
जैसे भारती की रंगीन गुलाबों की घाटियों में से गुज़रना
नसों के रेशमी तूफ़ानों के रास्तों से निकलना
और बादल-धुले कचनारों की नरमाइयों के आकाश में तैरना !