भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विदा / प्रयाग शुक्ल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:44, 4 जुलाई 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रयाग शुक्ल |संग्रह=यह जो हरा है / प्रयाग शुक्ल }} शायद ...)
शायद बारिश हो रही होगी ख़ूब
या ख़ूब ठंड होगी
या ख़ूब गर्मियाँ
हो सकता है चल रही हो आंधी
उड़ रहे हों पत्ते,
उड़ रही हो धूल--
हम विदा हो जाएंगे
कोई पहचानेगा उस वक़्त
बूंदों का गिरना
हवा का सिहरना
उड़ना धूल का !
हम विदा हो जाएंगे !