भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रवासिनी बिटिया के प्रति / रणजीत

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:08, 2 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रणजीत |संग्रह=प्रतिनिधि कविताएँ / रणजीत }} {{KKCatKavita‎…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नहीं, अब मैं तुम्हें याद नहीं करता
तुमने ख़ुद मुझसे दूर अपना ठिकाना चुन लिया है, बिटिया
तब व्यर्थ तुम्हें याद कर क्यों दुःखी होता रहूँ ?
सचमुच, अब मैं तुम्हें याद नहीं करता ।

बस यह कि जिस दिन सुबह
हाफ़-फ़्राइड अंडा नाश्ते में बनता है
एक-एक ग्रास मेरे गले में अटकता है
और गले की रुकावट से आँखें थोड़ी छलछला जाती हैं
तुम तो शायद अब तक
हाफ़-फ़्राइड अंडे का स्वाद भी भूल गई होगी
नहीं, मैं भी अब तुम्हें याद नहीं करता।

सिर्फ़ यह कि
कल पंचायत उद्योग गया तो
अवस्थी पार्क के फाटक में
अपने आप मुड़ गया स्कूटर
सामने तुम्हारा शिशुमंदिर देख कर
अपनी ग़लती पर ध्यान गया
पर देख लो, न मैं वहाँ रुका, न किसी से मिला
न उस अतीत पर आहें भरीं
जब तुम वहाँ झूला झूलती हुई मिलती थीं
और दौड़कर लिपट जाती थी
बस, चुपचाप वापस लौट आया
और अपना काम करने लगा

तुम ख़ुश रहो बेटी, मैं बिल्कुल तटस्थ हूँ
सारी परस्थता छोड़ कर अब स्वस्थ हूँ ।