भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लीजिये बढ़के अपनी बाँहों में / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:47, 2 जुलाई 2011 का अवतरण
लीजिये बढ़के अपनी बाँहों में
हम भी बैठे हैं दिल की राहों में
वह किसी फूल में नहीं देखी
जैसी ख़ुशबू थी उन निगाहों में
कुछ तो इस दिल ने कह दिया था उन्हें
कल सितारों की नर्म छाँहों में
वे ख़यालों में ही मिलें तो कभी
है अँधेरा इन ऐशगाहों में!
आज ऊँचे पे खिल रहे हैं गुलाब
उनको काँटे चुभे न बाँहों में