भग्नेश / माया मृग
नगाड़ची मन्दिर
बुढ़ाया बरगद
घिसियाये चेहरे,
लटके मुँहवाले पुजारी
मुरझायी आँखों वाली औरतें,
थुथलाये जिस्म
भक्ति में औंधे पड़े
आर्त्तनाद करते है।
स्कूली बच्चे
घण्टियां बजाते हैं
और अभ्यास दोहराते हैं
सरकारी स्कूल में काटे
सड़ियाये दिनों का।
गोरे सपनों वाली काली लड़कियां
प्रदक्षिणा देती हैं और
एक पतझर के नाम का
एक घड़ियाली टनका बजाती हैं।
चेताती हैं - अनपढ़ मूर्ति को
और मिचमिचाती आँखों में
जाग उठता है
कमलों भरा तालाब।
बरगद जानता है
तालाब में
तल तक-किचड़ है
नगाड़े ढमढमाते हैं
पीतल की छोटी-बड़ी घण्टियां
घनघनाती हैं।
बहुत सारे जिस्म, एक साथ हिलते हैं,
झूमते सिर-चक्करघिन्नी खाते हैं
और धड़ाम से
नगाड़े पर जा पड़ते हैं।
घर्राटे के साथ
उच्चरित होते हैं
खरखराते मंत्र।
बरगद जानता है
पर चुप रहता है।
उसकी डालों पर झूलते बंदर
जोर-जोर से किटकिटाते हैं
स्वरों के साथ-पिटते हैं तालियां
और मंत्रों के राज़ को
सार्वजनिक करते हुए हँसते है।
पुजारी की त्यौरियां चढ़ जाती हैं,
भक्तों की गर्दनों पर
श्रद्धा का वज़न और बढ़ जाता है
आरती के बाद
पुजारी
ताला लगाकर मन्दिर को
घर चला जाता है।
तब
आधी रात के सन्नाटे में
बूढ़ बरगद हँसता है !
जोर-जोर से हँसता है !