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जेब / प्रयाग शुक्ल

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मेरी भी एक जेब है ।

पत्नी कहती है

रहती है खाली ।

खाली जेब हर सुबह मिलती है खाली ।

कोट की जेब हो या कमीज़ की ।


पेड़ को चिंता नहीं है ठूँठ की

चिड़ियाँ चहचहाती हैं

मैं जब एक पगडंडी पर चला जा रहा होता हूँ

घास पर-- पीली मुरझाई घास पर

धीरे-धीरे माथे को तपा कर धूप

दिलाती है याद हज़ार चीज़ों की ।

मैं हाथ डालता हूँ जेब में

खाली जेब । खाली । कोई बात नहीं

मैं उसे धूप पर उलट दूँ

या बंद रखूँ

कोई फ़र्क नहीं पड़ता ।


खाली । जेब । खाली जेब की स्मृतियाँ ।