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हमें नहीं मालूम था / प्रयाग शुक्ल

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हमें नहीं मालूम था कि हम मिलेंगे एक दिन

पर जब मिल जाते हैं लगता है

तय था हमारा मिलना । यह कविता केवल मनुष्यों

के बारे में नहीं है । हम बैठे रहते हैं गुमसुम

कभी भीतर से अशांत । हम यानी मैं कुछ सीढ़ियाँ

कुछ पेड़, पहाड़, लड़कियाँ कभी आकाश धूप

छत आवाज़ें रात की दिन की ।

जब हम सचमुच मिलते हैं

लगता है तय था हमारा मिलना ।