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बात / प्रयाग शुक्ल
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उस बात के सिरे के लिए कोई
शब्द नहीं है शुरू में ।
और जितने आते हैं उन्हें हम एक-एक कर
अधूरा मानते हुए छोड़ने लगते हैं ।
हम कई चीज़ों को याद करते हैं
और पाते हैं कि वे उस बात के बीच
की नहीं हैं । यह एक लंबा सिलसिला है ।
अंत में हम उठ पड़ते हैं,
कापी कलम और सिगरेट का पैकेट
सँभालते ।