भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कितनी भी दूर जाके बसे हों निगाह से / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:27, 9 जुलाई 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कितनी भी दूर जाके बसे हों निगाह से
वे पास ही मिले हैं मगर दिल की राह से

कहने को तो हमें भी किया याद आपने
अच्छा था भूलना ही मगर इस निबाह से

मंज़िल हो आख़िरी यही, यह हो नहीं सकता
आगे गयी है राह इस आरामगाह से

देखेंगे हम भी अपने तड़पने का असर आज
पत्थर पिघल गये हैं सुना दिल की आह से

काँटों में दिल हमारा तड़पता है ज्यों गुलाब
क्या दुश्मनी थी आपकी इस बेगुनाह से