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ये कैसा जहाँ है या रब / सुरेश सलिल
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ये कैसा जहाँ है या रब
नाकामि-ए-जाँ है या रब
ठिठके से खड़े हैं कंगूरे
ख़ामोश अज़ाँ है या रब
क्या ज़िक्र सुबह का कीजे
ख़ूँनाबफ़िशाँ है या रब
शामें तो वही हैं बेशक
मैख़ाना कहाँ है या रब
या रब ये ग़ज़ल है कैसी,
मुँह में न ज़ुबाँ है या रब
उम्मीद-ए-दाद कहाँ की
मक़्ते में ख़ज़ाँ है या रब
=
ख़ूँनाबफ़िशाँ=ख़ून के आँसू रोना
(रचनाकाल : 1998)