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सम्राट हैं जमूरे / कुमार रवींद्र
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अँधों के यज्ञ
भला कौन करे पूरे
बूढ़े देवालय हैं - देवता अधूरे
सपनों की बस्ती की
है व्यथा अछूती
बहरे सिंहासन हैं
कायर रजपूती
तंत्र हैं तमाशे - सम्राट हैं जमूरे
डरे हुए आश्रम
अभ्यस्त हैं प्रजाएँ
बुझे हुए दीपों से
होतीं पूजाएँ
मंदिर को छोड़ लोग पूज रहे घूरे
घर-घर में गूँज रहीं
प्रार्थनाएँ झूठी
बज रही पिपहरी की
तान है अनूठी
आँगन में रेंग रहे साँप-कनखजूरे