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जय कन्हैयालाल की / कुमार रवींद्र
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हाथी हैं-घोड़े हैं
'जय कन्हैयालाल की'
ऋषियों के कंधों पर सोने की पालकी
पूरब है
पच्छिम है
सारे ही मौसम हैं
राजसी ख़िताबों से
घिरे हुए आश्रम हैं
कौन कहे - सारी ही धरती गोपाल की
बहरी मीनारें हैं
गूँगे दरवाज़ें हैं
सडकों पर शोरगुल
पटाखे हैं - बाजे हैं
सिंह को ज़रूरत है हिरणों की छाल की
इन्द्रपुरी में उत्सव
गोवर्धन खंडित है
पूजित संध्याएँ हैं
सूर्योदय दंडित है
बजती है सभी ओर ताली बेताल की