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चौमासो / कन्हैया लाल सेठिया

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बगतां
चौमासे री
गैळी ज्योड़ी रातां में
आवै खेतां में ऊभै
लीलै धान री
मन मोवणी सौरम,
गमकैं काकड़िया‘र मतीरां रा
चिंयां‘र फुलड़ा
जाणै खोल दियो हुवै
कोई गंधी
फुलेल रो अंतरदान,
कोनी पनपै पण
भूख ज्यूं जूझती इण
जीवट री धरती पर
पोतड़ा रा अमीर
मोलसिरी, हर सिंगार‘र रात राणी
पण मैकै
इण सोनल रेत री
राम रमै जिसी रोही में
करसै‘र कमतरियै री
आत्मा री सुवास !