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सप्ताह की कविता
शीर्षक : आदिवासी (रचनाकार: अनुज लुगुन )
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वे जो सुविधाभोगी हैं या मौक़ा परस्त हैं या जिन्हें आरक्षण चाहिए कहते हैं हम आदिवासी हैं, वे जो वोट चाहते हैं कहते हैं तुम आदिवासी हो, वे जो धर्म प्रचारक हैं कहते हैं तुम आदिवासी जंगली हो । वे जिनकी मानसिकता यह है कि हम ही आदि निवासी हैं कहते हैं तुम वनवासी हो, और वे जो नंगे पैर चुपचाप चले जाते हैं जंगली पगडंडियों में कभी नहीं कहते कि हम आदिवासी हैं वे जानते हैं जंगली जड़ी-बूटियों से अपना इलाज करना वे जानते हैं जंतुओं की हरकतों से मौसम का मिजाज समझना सारे पेड़-पौधे, पर्वत-पहाड़ नदी-झरने जानते हैं कि वे कौन हैं ।