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पहिले घन-आनंद सींचि सुजान कहीं बतियाँ / घनानंद

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सवैया

पहिले घन-आनंद सींचि सुजान कहीं बतियाँ अति प्यार पगी।
अब लाय बियोग की लाय बलाय बढ़ाय, बिसास दगानि दगी।
अँखियाँ दुखियानि कुबानि परी न कहुँ लगै, कौन घरी सुलगी।
मति दौरि थकी, न लहै ठिकठौर, अमोही के मोह मिठामठगी।। 10 ।।