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हम अगस्त्य के वंशज/ रविशंकर पाण्डेय

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हम अगस्त्य के वंशज
हम अगस्त्य के वंशज ठहरे-
खारे आँसू पीते,
रोज सिसकियों-
मर मिटते हैं
और ठहाकों जीते!

हम जंगल के परिजात हैं
हम कांटों मे हंसते
जीवन हुआ कसौटी
खुद को-
रहे उम्र भर कसते
आँसू और हँसी दोनो को
हमने लिया सुभीते!

भीड़ झेलता दरवाजा
आंगन बुनता सन्नाटा
ऐक गाल पर चुंबन
दूजे पर वियोग का चांटा
जो भी मिला
दे गया अनुभव
कुछ मीठे ,कुठ तीते!
मट्ठा पीते
फूँक फूँक हम
जले हुए हैं दूधों
हम आषाढ़ के चातक
जीते हैं
स्वाती की बूंदों
श्रम सीकर से भर देते हम
सुख के सागर रीते!

हम अगस्त्य के वंशज
खारे आँसू पीते
रोज सिसकियों
भर मिटते हैं
और ठहाकों जीते!!