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नन्हीं बच्ची-सी धूप / सुरेश यादव

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खिलौने रचे थे - हमने इस लिए कि इनसे खेलेंगे खेलने लगे अपनी मरजी से लेकिन ये खिलौने करने लगे मनमानी बच्चों को खाने लगे बे खौफ ये खिलौने

बेकाबू हुए हैं जब से ये खिलौने एक-एक कर हम भूल गए हैं सारे खेल बदहवासी में खिलौने अब हमें डराने लगे हैं.