भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नन्हीं बच्ची-सी धूप / सुरेश यादव
Kavita Kosh से
डा० जगदीश व्योम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:43, 19 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: खिलौने रचे थे - हमने इस लिए कि इनसे खेलेंगे खेलने लगे अपनी मरजी से …)
खिलौने रचे थे - हमने इस लिए कि इनसे खेलेंगे खेलने लगे अपनी मरजी से लेकिन ये खिलौने करने लगे मनमानी बच्चों को खाने लगे बे खौफ ये खिलौने
बेकाबू हुए हैं जब से ये खिलौने एक-एक कर हम भूल गए हैं सारे खेल बदहवासी में खिलौने अब हमें डराने लगे हैं.