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हमारा दिल / विजय गुप्त

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प्रार्थना-घर सिर्फ़ इमारत नहीं
सिर्फ पद्धति नहीं
जुलूसों को, संगीनों को
वहाँ से हटा लीजिए

सो रहे हैं
वहाँ हमारे पुरखे

उनकी नींद के बीच
जातिवाचक विशेषण
मत रखिए
किसी भी संज्ञा से
मत पुकारिए

वह हमारा
प्रार्थना-घर है
हमारा दिल ।