भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कौन अब सुनेगा ये गीत! / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:32, 22 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=हम तो गाकर मुक्त हुए / गु…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कौन अब सुनेगा ये गीत!
एक-एक करके जा रहे हैं सभी मीत

वन में ज्यों लगी आग
डर-डर कर रहे भाग
विहगों के दल विकल, सभीत
 
काल जिसे लिखता है
पृष्ठ शून्य दिखता है
जीवन सपने-सा रहा बीत
 
क्षीण तड़ित-रेखा है
शेष कुल अदेखा है
आगे नीलाभ, मौन, शीत

कौन अब सुनेगा ये गीत!
एक-एक करके जा रहे हैं सभी मीत