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कौन अब सुनेगा ये गीत! / गुलाब खंडेलवाल
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कौन अब सुनेगा ये गीत!
एक-एक करके जा रहे हैं सभी मीत
वन में ज्यों लगी आग
डर-डर कर रहे भाग
विहगों के दल विकल, सभीत
काल जिसे लिखता है
पृष्ठ शून्य दिखता है
जीवन सपने-सा रहा बीत
क्षीण तड़ित-रेखा है
शेष कुल अदेखा है
आगे नीलाभ, मौन, शीत
कौन अब सुनेगा ये गीत!
एक-एक करके जा रहे हैं सभी मीत