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नाम लेते जिनका दुख भागे / गुलाब खंडेलवाल

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नाम लेते जिनका दुख भागे
मिला उन्हें तो जीवन-भर दुख ही दुख आगे-आगे
 
छूटा अवध साथ प्रिय-जन का
शोक असह था पिता-मरण का
देख कष्ट मुनियों के मन का
वन के सुख भी त्यागे
 
वन-वन प्रिया-विरह में फिरना
'कैसे हो सागर का तिरना?'
भ्राता का मूर्छित हो गिरना
नित नव-नव दुख जागे
 
गूँजी ध्वनि जब कीर्ति-गान की
फिर चिर-दुख दे गयी जानकी
माँग उन्हीं-सी शक्ति प्राण की
मन! तू सुख क्या माँगे!

नाम लेते जिनका दुख भागे
मिला उन्हें तो जीवन-भर दुख ही दुख आगे-आगे