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न यह संवाद जनकपुर जाये / गुलाब खंडेलवाल
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न यह संवाद जनकपुर जाये
नाथ! मुझे सब वहाँ आपकी दासी ही बतलायें
क्या फिर दुगुनी व्यथा न होगी
यदि अभियुक्त बने अभियोगी
मैंने तो भोगी सो भोगी
आप न अश्रु बहायें
पूछेंगे जब वहाँ नारी नर
अग्नि परीक्षा भी देने पर
सीता क्यों दोषी तो उत्तर
क्या देंगे बतलायें
दो दिन भी न कटे हैं सुख से
कहे नहीं चाहे कुछ मुख से
माँ शैया पकड़ेगी दुःख से
पा ये नयी व्यथाएं
न यह संवाद जनकपुर जाये
नाथ! मुझे सब वहाँ आपकी दासी ही बतलायें