Last modified on 22 जुलाई 2011, at 17:24

अभी तो कुछ बीता नहीं है / जितेन्द्र सोनी

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:24, 22 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जितेन्द्र सोनी |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> अभी तो कुछ ब…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


अभी तो कुछ बीता नहीं है
जीवन अमृत रीता नहीं है
छूने को हो तुम आसमान
फिर इतने निराश क्यूं
होते तुम उदास क्यूं
सुन अंतस की पुकार
तू हिम्मत न हार
अर्जन कर
सृजन कर
अपने कदम आगे बढ़ा
कौन बला है
उससे टकरा !
राहें कंटीली हैं
मुसीबतें हठीली हैं
काँटों पर तुम्हे चलना है
हंसकर पार उतरना है
क्या पढ़ी गीता नहीं है
मत फूल -पत्ते शाख देख
चिड़िया की तू आँख देख
गांडीव उठा, दे टंकार
सीना तान , भर हुंकार
दूर क्षितिज पर तू देख जरा
क्या कहती है वसुंधरा
झुक गया कैसे आसमान
अपने को तू भी पहचान
दुनिया का रिवाज पुराना है
पतझड़ को तो जाना है
अपनी फौलादी बाहें फैला
चुनौतियों को गले लगा
मंजिल तेरे कदम चूमेगी
धरती तो यूं ही घूमेगी
तुम को कर दिखलाना है
उपवन ये भी खिल जाएगा
जीवन लक्ष्य मिल जाएगा!