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निचोड़ / सुदर्शन प्रियदर्शिनी
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रख दिए थे
मैंने सारे निचोड़
ताक पर संभाल कर
समझा था
यही निचोड़ हैं
ये ही सत्य हैं
यही अन्विति है।
पर लगता है
वे कच्चे अनुभव थे
ज़िंदगी के सीने से उलीचे गए
आज के सच्च
उन काग़जी सच्चाइयों को
सरे आम निगले जा रहे हैं।