भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बरवै रामायण / तुलसीदास / पृष्ठ 6

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:30, 27 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे= ब…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज



बरवै रामायण अयोध्याकाण्ड प्रारंभ

( पद 20 से 27तक)

सात दिवस भए साजत सकल बनाउ।
का पूछहु सुठि राउर सरल सुभाउ।20।

राजभवन सुख बिलसत सिय सँग राम।
बिपिन चले तजि राज सो बिधि बड़ बाम।21।

कोउ कह नर नारायन हरि हर कोउ।
कोउ कह बिरहत बन मधु मनसिज दोउ।22।

तुलसी भइ मति बिथकित करि अनुमान ।
राम लखन के रूप न देखेउ आन।23।

तुलसी जनि पग धरहु गंग गह साँच ।
निगानाँग करि नितहि नचाइहि नाच।24।

सजल कठौता कर गहि कहत निषादं।
 चढ़हु नाव पग धोइ करहु जनि बाद।25।

कमल कंटकित सजनी कोमल पाइ।
निसि मलिन यह प्रफुलित नित दरसाइ।26।

( बाल्मीकि वचन )

द्वै भुज करि हरि रघुबर सुंदर बेष।
एक जीभ कर लछिमन दूसर सेष।27।

(इति बरवै रामायण अयोध्याकाण्ड)

अगला भाग >>