भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बेदिली क्या यूँ ही दिल गुज़र / जॉन एलिया
Kavita Kosh से
Ranjanjain (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:55, 28 जुलाई 2011 का अवतरण
यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
बेदिली! क्या यूँ ही दिन गुजर जायेंगे
सिर्फ़ ज़िन्दा रहे हम तो मर जायेंगे
ये खराब आतियाने, खिरद बाख्ता
सुबह होते ही सब काम पर जायेंगे
कितने दिलकश हो तुम कितना दिलजूँ हूँ मैं
क्या सितम है कि हम लोग मर जाएंगे