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सुबह के लिए / कुमार अंबुज
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सुबह के लिए
चौका-बर्तन के बाद
माँ ने ढँक दिये हैं कुछ अंगारे
राख से
थोड़ी-सी आग
कल सुबह के लिए भी तो
चाहिए !
(1988)