भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ये वही पुरानी राहें हैं / कुमार विश्वास
Kavita Kosh से
Silky (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 12:50, 14 जुलाई 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रचनाकार का नाम }} चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सप...)
चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सपन सुहाने हैं
ये वही पुरानी राहें हैं, ये दिन भी वही पुराने हैं
कुछ तुम भूली कुछ मै भूला मंज़िल फिर से आसान हुई
हम मिले अचानक जैसे फिर पहली पहली पहचान हुई
आँखों ने पुनः पढी आँखें, न शिकवे हैं न ताने हैं
चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सपन सुहाने हैं
तुमने शाने पर सिर रखकर, जब देखा फिर से एक बार
जुड गया पुरानी वीणा का, जो टूट गया था एक तार
फिर वही साज़ धडकन वाला फिर वही मिलन के गाने हैं
चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सपन सुहाने हैं
आओ हम दोनो की साँस का बस एक वही आधार रहे
सपने, उम्मीदें, प्यास मिटे, बस प्यार रहे बस प्यार रहे
बस प्यार अमर है दुनिया मे सब रिश्ते आने-जाने हैं
चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सपन सुहाने हैं