भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बरवै रामायण/ तुलसीदास / पृष्ठ 3

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:58, 30 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे= ब…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

( बरवै रामायण बालकाण्ड/पृष्ठ-2)

( पद 6 से 10तक)

काम रूप सम तुलसी राम स्वरूप।
को कबि समसरि करै परै भवकूप।6।

साधु सुसील सुमति सुचि सरल सुभाव।
राम नीति रत काम कहा यह पाव।7।

 सींक-धनुष हित सिखन सकुचि प्रभु लीन।
मुदित माँगि इक धनुही नृप हँसि दीन।8।

केस मुकुत सखि मरकत मनिमय होत।
हाथ लेत पुनि मुकुता करत उदोत।9।
 
सम सुबरन सुषमाकर सुखद न थोर।
सिय अंग सखि कोमल कनक कठोर।10।

(इति बरवै रामायण बालकाण्ड पृष्ठ 2)



अगला भाग >>