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अभिधा में नहीं / नंदकिशोर आचार्य

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जो कुछ कहना हो उसे
--खुद से भी चाहे—
व्यंजना में कहती है वह
कभी लक्षणा में
अभिधा में नहीं लेकिन
कभी

कोई अदालत है प्रेम जैसे
कबूल अभिधा में जो
कर लिया
--सजा से बचेगी कैसे!