जो कुछ कहना हो उसे
--खुद से भी चाहे—
व्यंजना में कहती है वह
कभी लक्षणा में
अभिधा में नहीं लेकिन
कभी
कोई अदालत है प्रेम जैसे
कबूल अभिधा में जो
कर लिया
--सजा से बचेगी कैसे!
जो कुछ कहना हो उसे
--खुद से भी चाहे—
व्यंजना में कहती है वह
कभी लक्षणा में
अभिधा में नहीं लेकिन
कभी
कोई अदालत है प्रेम जैसे
कबूल अभिधा में जो
कर लिया
--सजा से बचेगी कैसे!