भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कांई करां / हरीश बी० शर्मा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:16, 8 अगस्त 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश बी० शर्मा |संग्रह=थम पंछीड़ा.. / हरीश बी० शर…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


एक पिछाण तो बणै
सोचता-सोचता
घणा‘ई चोखा-अनोखा,
खोटा-खरा
करम करां हां
कै लोगां नैं लागै
सांस म्हैं भी लेवां हां
जीवण रो तरीको
अब सीख लिया है
सतरंगी जमानै री
ऊंच-नीच जाण‘र
गिरगिट-भेस धर लियो है
लाज-सरम नैं छोड‘र
बेसरमी नैं वर लियो है।