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हुणो कांईं है ? / हरीश बी० शर्मा

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अणदेखी-अणजाणी बात
आज साची देखां हां
जाणां हां।
कूकड़ां नैं कूकता
कागलां नैं कंजरावतां
चिड़कल्यां री चांव-चावं
अर म्हां
गूदड़ा में दापळीज्योड़ा
सिरखां सूं ढ़क‘र माथो
कुंभकरण रा बीज, तरी लेवां हां।
कद सूरज आयो
अर चढ़ग्यो आभै माथै
जे जाण लेसां
तो, हुणी-जाणी है कांईं ?
जे उठ‘र दो पांवडा
चाल लेसां।