भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जूण रो जथारथ / हरीश बी० शर्मा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:51, 8 अगस्त 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश बी० शर्मा |संग्रह=थम पंछीड़ा.. / हरीश बी० शर…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।


जे जूण में आयो है
मानखै री
तो मान‘र चाल
तकलीफां तो आसी
फोड़ा तो पड़सी
पण थ्यावस राख
करमां री कहाणी
अर लकीरां री सैनाण सूं दूर
एक सूरज, थोड़ा तारा
अर पळकतो चंदरमा
थारी बाट जोवै।