भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्षितिज के नेह का हूँ अंश / भारत यायावर

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:44, 18 जुलाई 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारत यायावर |संग्रह=हाल-बेहाल / भारत यायावर }} पीले वस्...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


पीले वस्त्रों में है मणि-कांत

स्वर्णिम वह

रक्तिम अधर

चुपके से आकर

मुझे जगा जाती है

खोलता हूँ आँखें

गहन अंधकार से

आता हूँ बाहर

मंद-मदिर पवन के साथ

हिलते पत्ते

एक काव्यात्मक लय में

चिड़ियों का कल-कूजन

और थिरकती हुई देह

क्षितिज के नेह का हूँ अंश

पर बहुत थोड़ा

दे पाता हूँ

फिर भी

कहाँ रह पाता है संचित

आज पूर्वाकाश ने

प्रकट कर दिया है

वह रहस्य

जिसके अस्तित्व से

अनभिज्ञ था


(रचनाकाल :1991)