भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मिनखा सरीर / हरीश बी० शर्मा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:47, 8 अगस्त 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश बी० शर्मा |संग्रह=थम पंछीड़ा.. / हरीश बी० शर…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


मिनखा सरीर
समै री तसवीर
चमकती सोनलिया काठ री
चौखट में मंढयोड़ी
मिंदर में
एक खीलै री अटकाण सूं
अटकी है
खीलो भाव रो कै भगती रो
पिछाण कोनी
पण माळा मोड़-बेेगै चढै है
अर भींत रै सायरै लटकी है
हे पड़ी !
अर, बा पड़ी !!
पड़ण रै अंदेसै में
बरसा बंधी टंगी रैवै है।