भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बापड़ो / हरीश बी० शर्मा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:31, 9 अगस्त 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश बी० शर्मा |संग्रह=थम पंछीड़ा.. / हरीश बी० शर…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


हिवड़ै री कहाणी
कांई समझाणी ?
चालतो ही लाग जावै
अखड़ जावै, पड़ जावै
खा खा‘र चोटां-टूट जावै है
पण हेत रो हिमायती
एक बार फेर री रट लगावै है
अर गाळ देवै है
मानखै री आखी जूण
ईं ना-समझ बावळै नैं
समझावै कुण ?