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पेड़ चलते नहीं / सुरेश यादव

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पेड़ ज़मीन पर चलते नहीं देखा भी नहीं किसी ने पेड़ों को ज़मीन पर चलते हुए


धूप हो कड़ी और थकन हो अगर आस पास मिल जाते हैं पेड़ - सिर के ऊपर पिता के हाथ की तरह कहीं माँ की गोद की तरह


आँखें नहीं होती हैं - पेड़ों की न होते हैं पेड़ों के कान वक्त के हाथों टूटते आदमी की आवाज़ सुनते हैं पेड़, फिर भी


आँखों देखे इतिहास को बताते हैं पेड़ अपनी देह पर उतार कर बूढ़े दादा के माथे की झुर्रिओं की तरह


जीत का सन्देश देते हैं पेड़ नर्म जड़ें निकलती हैं जब चट्टानें तोड़ कर


पेड़ों की अपनी भाषा होती है धर्म का प्रचार करते हैं पेड़ फूलों में रंग और खुशबू भर कर


गूंगे तो होते नहीं हैं पेड़ बोलते हैं, बतियाते हैं बसंत हो या पतझर हर मौसम का गीत गाते हैं पेड़ कभी कोपलों में खिलकर कभी सूखे पत्तों में झर कर।