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फिर महकी अमराई / अवनीश सिंह चौहान

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फिर महकी अमराई
कोयल की ऋतु आई
नए-नए बौरों से
डाल-डाल पगलाई !

एक प्रश्न बार-बार
पूछता है मन उघार
तुम इतना क्यों फूले?

नई-नई गंधों से
सांस-सांस हुलसाई!

अंतस में प्यार लिए
मधुरस के आस लिए
भँवरा बन क्यों झूले?

न-नए रागों से
कली-कली मुस्काई!

फिर महकी अमराई
कोयल की ऋतु आई
नए-नए बौरों से
डाल-डाल पगलाई!