भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फिर महकी अमराई / अवनीश सिंह चौहान
Kavita Kosh से
Abnish (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:15, 12 अगस्त 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान |संग्रह= }} <poem> फिर महकी अमराई को…)
फिर महकी अमराई
कोयल की ऋतु आई
नए-नए बौरों से
डाल-डाल पगलाई !
एक प्रश्न बार-बार
पूछता है मन उघार
तुम इतना क्यों फूले?
नई-नई गंधों से
सांस-सांस हुलसाई!
अंतस में प्यार लिए
मधुरस के आस लिए
भँवरा बन क्यों झूले?
न-नए रागों से
कली-कली मुस्काई!
फिर महकी अमराई
कोयल की ऋतु आई
नए-नए बौरों से
डाल-डाल पगलाई!