भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वो कैसी कहां की ज़िन्दगी थी / परवीन शाकिर

Kavita Kosh से
Lina niaj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 23:11, 29 जुलाई 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परवीन शाकिर |संग्रह= }} वो कैसी कहां की ज़िन्दगी थी जो त...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


वो कैसी कहां की ज़िन्दगी थी

जो तेरे बगैर कट रही थी


उसको जब पहली बार देखा

मैं तो हैरान रह गयी थी


वो चश्म थी सहरकार बेहद

और मुझपे तिलस्म कर रही थी


लौटा है वो पिछले मौसमों को

मुझमें किसी रंग की कमी थी


सहरा की तरह थीं ख़ुश्क आंखें

बारिश कहीं दिल में हो रही थी


आंसू मेरे चूमता था कोई

दुख का हासिल यही घड़ी थी


सुनती हूं कि मेरे तज़किरे पर

हल्की-सी उस आंख में नमी थी


ग़ुरबत के बहुत कड़े दिनों में

उस दिल ने मुझे पनाह दी थी


सब गिर्द थे उसके और हमने

बस दूर से इक निगाह की थी


गु़रबत=प्रवास