भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पारिजात / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ / प्रथम सर्ग / पृष्ठ - २

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:24, 22 अगस्त 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ |संग्रह=पारिजात …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(2)
दिव्य दशमूर्ति

गीत

जय-जय जयति लोक-ललाम,
सकल मंगल-धाम।

        भरत भू को देख अभिनव भाव से अभिभूत।
        राममोहन रूप धर भ्रम-निधन-रत अविराम॥1॥
        विविध नवल विचार-विचलित युवक-दल अवलोक।
        रामकृष्ण स्वरूप में अवतरित बन विश्राम॥2॥

विपुल आकुल बाल-विधवा बहु विलाप विलोक।
विदित ईश्वरचन्द्र वपु धर स्ववश-कृत विधि वाम॥3॥

        वेद-विहित प्रथित सनातन-पंथ मथित विचार।
        दयानन्द शरीर धर शासन-निरत वसु याम॥4॥

पतन-प्राय समाज-शोधन की बताई नीति।
विहर रानाडे-हृदय में विदित कर परिणाम॥5॥

        एक सत्ता मंत्र से दी धर्म्म को ध्रुव शक्ति।
        रामतीर्थ स्वरूप धर उर-हार कर हरि-नाम॥6॥

दलित वंचित व्यथित महि में की अचिन्तित क्रान्ति।
बाल-गंगाधर तिलक बनकर अलौकिक काम॥7॥

        राजनीति-विधन की विधि-हीनता की हीन।
        गोखले गौरवित तन धर विरच सित मति श्याम॥8॥

तिमिर-पूरित भरत-भू में ज्योति भर दी भूरि।
मदनमोहन मूर्ति धर बनकर भुवन-अभिराम॥9॥

        विविध बाधा मुक्ति-पथ की शमन की रह शान्त।
        मंजु मोहन-चन्द में रम कर विहित संग्राम॥10॥

मातृ-महि-हित-रत क हर हृदय कुत्सित भाव।
द्रवित उर 'हरिऔध' गुंफित दिव्य जन गुणग्राम॥11॥

शार्दूल-विक्रीडित

नाना कार्य-विधायिनी निपुणता नीतिज्ञता विज्ञता।
न्यारी जाति-हितैषिता सबलता निर्भीकता दक्षता।

        सच्ची सज्जनता स्वधर्म-मतिता स्वच्छन्दता सत्यता।
        दिव्यों की दर्शमूर्ति देश-जन को देती रहे दिव्यता॥12॥