भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बरवै रामायण / तुलसीदास/ पृष्ठ 4
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:31, 24 अगस्त 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे= ब…)
( बरवै रामायण बालकाण्ड/पृष्ठ-3)
( पद 11 से 15तक)
सिय मुख सरद-कमल जिमि किमि कहि जाइ।
निसि मलीन वह निसि दिन यह बिगसाइ।11।
चंपक हरवा अंग मिलि अधिक सोहाइ।
जानि परै सिय हिवरें जब कुँभिलाइ।12।
सिय तुव अंग रंग मिलि अधिक उदोत।
हार बेल पहिरावौं चंपक होत।13।
नित्य नेम कृत अरून उरय जब कीन।
निरखि निसाकर नृप मुख भए मलीन।14।
कमठ पीठ धनु सजनी कठिन अँदेस।
तमकि ताहि ए तोरिहिं कहब महेस।15।
(इति बरवै रामायण बालकाण्ड पृष्ठ 3)